हनुमान जन्मोत्सव 27 अप्रैल 2021

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                                 हनुमान जन्मोत्सव27 अप्रैल 2021


आदि देव शिवजी के अंशावतार महाबली हनुमानजी का जन्मदिन पुरे भारत में ही नहीं वरन संपूर्ण विश्व में बड़ी 

धूम धाम से मनाया जाता है|महाबली हनुमानजी की माता का नाम माता अंजनी और पिताजी का नाम केसरी था|

ब|नर कुल में जन्म लेने के कारण बाल्यकाल से ही हनुमानजी बहुत चंचल स्वाभाव के थे|




एक बार भूख से व्याकुल होने पर उन्होंने सूर्य देवता को कोई लाल फल समझकर अपने मुँह में रख लिया था,जिससे पुरे ब्रह्माण्ड मेंअँधेरा छा गया था|फिर देवराज इन्द्र के प्रहार से सूर्य को इन्होने अपने मुँह से मुक्त किया और ठोड़ी पर चोट लगने के कारण इनकानाम हनुमान पड़ा | 

ये बहूत बलशाली और बुद्धिमान थे पर ब|नर स्वाभाव के कारण ये ऋषिमुनिओ को परेशांन करते थे|

इनसे परेशान होकर ऋषिमुनिओं ने इन्हें श्राप दिया की जब तकआप को कोई आपकी शक्ति के बारे में याद नहीं दिलाएगा



 


तब तक आपको अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं होगा |रामायण में जब सीताजी की खोज के लिए सागर लांघने का समय आया

 तब जामवन्तजी ने इन्हें इनकी शक्ति को याद दिलाया और आपने एक ही छलांग में सागर पार कर लिया था |राम रावण युद्ध मुख्य जब लक्ष्मण जी को शक्ति बाण लगl तब हनुमान जी हिमालय से संजीवनी बूटी के लिए पूरा पर्वत ही ले आये थे |जिससे लक्सणजी के प्राणों की रक्षा हुई थी |आप भगव|न

 रामजी के अनन्य भक्त हैं इसलिए जहाँ भी रामायण का पाठ होता है वहां आप श्रवण के लिए पहुंच जाते हैं |


जो लोग हनुमानजी की पूजा करते हैं उनपर शैंनि का प्रभाव भी कम पड़ता है|हनुमानजी की पूजा करने वालों को कभी भूत पिशाच आदि का कोई डर नहीं रहता |
हनुमान चालीसा

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार

.जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

दोहा

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

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हनुमान जी की आरती

 आरती कीजै हनुमान लला की।दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।

जाके बल से गिरिवर कांपे।रोग दोष जाके निकट न झांके।।

अंजनि पुत्र महाबलदायी।सन्तन के प्रभु सदा सहाई।।

दे बीरा रघुनाथ पठाए।लंका जारि सिया सुध लाए।।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई ।।

लंका जारि असुर संहारे।सियारामजी के काज संवारे ।।

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।आणि संजीवन प्राण उबारे ।।

पैठी पताल तोरि जमकारे।अहिरावण की भुजा उखारे ।।

बाएं भुजा असुर दल मारे।दाहिने भुजा संतजन तारे ।।

सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे।जै जै जै हनुमान उचारे ।।

कंचन थार कपूर लौ छाई।आरती करत अंजना माई ।।

जो हनुमानजी की आरती गावै।बसि बैकुंठ परमपद पावै ।।

लंकविध्वंस किए रघुराई।तुलसीदास प्रभु कीरति गाई ।।

आरती कीजै हनुमान लला की।दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।


बोलो हनुमानजी की जय

 


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